Friday, October 24, 2008

क्षणिकाएं

अब तू नही तो क्या हुआ
ये फूल हैं ,ये रंग हैं
मैं तुझे ही देखता हूँ
ये आइने,ये दर्द हैं ।
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मेरे हर अश्क एक कहानी हैं
जिसे तुम कहते हो की एक पानी है
अपना साया देख सकते हो इसमें
मेरे अश्कों में तुम्हारी भी कहानी है
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तुम्हारे इश्क का वो नूर है
जो दिख रहा चेहरे पर मेरे
लोग अक्सर पूछते हैं -
कौन थी वो ?
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सागर की लहरों को गिनना
मेरी आदत पहले न थी
कुछ भी देखूं तुमको देखूं
ऐसी आदत पहले न थी
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चट्टानों से टकराकर भी
लहरें हार नहीं मानतीं
प्यार एक पागलपन हैं
बुद्धि भला कब इसे आंकती ?
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अपना सोचा कब होता है
नियति नटी पर मन रोता है
जग सारा जब सो जाता है
असमान तब क्यों रोता है ?
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मन्दिर में जा कर मैंने
कभी नही वरदान है माँगा
तेरे चरणों में शीश झुकाकर
यही कहा -"तुम भूल न जाना "
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ओस से भीगी हुयी
कंपती कली गुलाब की
जिंदगी कुछ इस तरह है
प्यार की और ख्वाब की
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कौन जाने प्यार क्या है
जब समर्पण मौन है
कह नही सकता जगत में
क्या मौन सचमुच मौन है ?
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संकोचों के पाटों में पिसती इच्छा
अब शाम हो गई
कह न पाए जो कहना था
तनहाई अब आम हो गई
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फूल का झरना नही इतिहास होता
समृद्धि के आगार पर दुःख का नही एहसास होता
है अगर तुममें कहीं विश्वास तो
तुम प्यार कर लो
ईश का वरदान कब अभिशाप होता ?
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किसकी तलाश में हम
राह ये हैं तकते
डूबे हैं कई मंज़र
टूटे हैं कई सपने
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बस यूँ ही कह कर तुमने
मुझको अर्थ दे दिए कितने
सुलझाने में जिसको मैंने
दर्द बुन लिए कितने
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शमा को पतंगे से
भला कब प्यार होता है
बड़ा मासूम आशिक है
जो जल के खाक होता है ।

Sunday, October 12, 2008

कृतज्ञता

कितना हर्षित कर जाते हो
प्रिय तुम प्यार लुटाकर
कितने फूल बिछा जाते हो
पथ से कांटे उठा-उठाकर

कहूँ कहाँ तक प्रेम तुम्हारा
जो निस्सीम गगन सा है
पार न जा पाता मैं उसके
वह अनंत -अगम-सा है

हर सुबह नई किरणे देकर
तुम हर लेते हो मेरी पीड़ा
फ़िर सांध्य समय अंतस में आकर
झंकृत करते हो अन्तर वीणा

हर क्षण तुम अपनी कोरों से
संसार सकल को बदल रहे
मेरे गीतों मेरी थिरकन में
तुम ही हो जो मचल रहे

हर सबनम का कतरा-कतरा
मेरे दुखों का निष्कासन है
तुम उन्हें उठाकर हाथों से
जो देते हो वो दर्शन है

फ़िर हास्य मिले या दुःख भाई
वो शून्य शान्ति में खो जाता है
मैं भेद नही कर पाता हूँ
यही तुम्हारी समरसता है

हूँ कृतज्ञ पूर्ण तुमसे मैं प्रियतम !
जो जीवन संगीत मुझे हो देते
मैं जीता हूँ बस उन्हीं क्षणों में
जिनमें तुम मुझसे हो मिलते .

Wednesday, October 8, 2008

याद तुम्हे किसकी आती ?

रिमझिम रिमझिम झिमझिम झिमझिम
बरस रही जल धार यहाँ पर
भीनी-भीनी खुशबू उठती
बहती बसंत बयार यहाँ पर
झूम रहे हैं तरु पुलकित सब
कोयल मधुरिम गीत सुनाती
बिहँस सखी तुम कह जाती हो
याद तुम्हे किसकी आती ?

वर्षा की बूंदे हैं झरती
पायल के घुँघरू सी छुन-छुन
मन मेरा कहता प्रिय आओ
अंक मुझे ले तुम सो जाओ
हा ! पलकें मेरी झुक जातीं
सिहरन सी तन में उठ जाती
बिहँस सखी तुम कह जाती हो
याद तुम्हे किसकी आती ?

इस उपवन के एकांत भवन में
बैठी हूँ वीणा सम्मुख
तुम आ जाते मैं छू तारों को
आज नया एक गीत सुनाती
पर हाय ! अकेली मैं चुनती हूँ
सपनों के सुंदर मोती
बिहँस सखी तुम कह जाती हो
याद तुम्हे किसकी आती ?

जीवन ही संताप बना है
प्रेम यहाँ अभिशाप बना है
कौन जिए किसकी खातिर
अखिल विश्व ही त्रास बना है
विरह जन्य पीड़ा क्या होती
काश ! कि तुमको बतला सकती
बिहँस सखी तुम कह जाती हो
याद तुम्हे किसकी आती ?

एक अनाम अतृप्त इच्छा सी
जीवन की सुधियाँ कुछ विष सी
दुविधा संभ्रम की विचलित करती
हत आहत मैं क्रंदन करती
फ़िर सुधियों की मदिरा पीकर
बेसुध जग से हो जाती
बिहँस सखी तुम कह जाती हो
याद तुम्हे किसकी आती ?

मौसम दिलकश उस दिन था
मौसम दिलकश अब भी है
फ़िर भी लगता जीवन सूना
जैसे टूटा कोई सपना
मना रही जो रूठा अपना
मेरी कोशिश असफल जाती
बिहँस सखी तुम कह जाती हो
याद तुम्हे किसकी आती ?