Sunday, February 11, 2018

एक कहानी अपनी भी है
कभी याद आये तो कहना
हमें कहाँ भूला है अब भी
कागज की कश्ती का बहना
यादों की झुरमुट से उड़कर
छत पे बैठी सोन-चिरैया
फूलों की क्यारी से अब भी
देख रहे तितली का उड़ना
सपने हैं जब तक आँखों में
सबसे हँसकर मिलना-जुलना
एक कहानी अपनी भी है
कभी याद आये तो कहना..
         
                               
शब्द मुखर हो अर्थ देते हैं
अर्थों से ज्यादा कभी दर्द देते हैं
दर्द जिसे सह गया
स्मृति शेष कोई भीतर रह गया....
मुझे लगा था अभी कहोगी
कथा बहुत से सपनों की
किसे ख़बर थी रोक न पायेगी
ममता भी अपनों की
तुम चल दोगी छोड़ अकेला
संबंधों को रिक्त किए
सूनी आँखें,बेबस मंज़र
खामोश खड़े हैं दर्द लिए.
अब देखने के लिए
आँखों की ज़रुरत नहीं
मतलब से दिखती है
हर वो चीज़
जो हम देखना चाहते हैं
पसरे हुए सन्नाटे में
चीख़ भी गुम हो जाती है जब
हमारे कान सिर्फ
मतलब की बात सुनते हैं
मैंने भी सुना है कि
लोग मतलबी हो गए हैं
क्योंकि ऐसा सुनने से
मुझे लगता है
मैं नहीं शामिल हूँ
उन तमाम मतलबी लोगों में
और कहने वाला खुश है
क्योंकि उसने मतलब के लिए ठहराया
लोगों को मतलबी