कितना हर्षित कर जाते हो
प्रिय तुम प्यार लुटाकर
कितने फूल बिछा जाते हो
पथ से कांटे उठा-उठाकर
कहूँ कहाँ तक प्रेम तुम्हारा
जो निस्सीम गगन सा है
पार न जा पाता मैं उसके
वह अनंत -अगम-सा है
हर सुबह नई किरणे देकर
तुम हर लेते हो मेरी पीड़ा
फ़िर सांध्य समय अंतस में आकर
झंकृत करते हो अन्तर वीणा
हर क्षण तुम अपनी कोरों से
संसार सकल को बदल रहे
मेरे गीतों मेरी थिरकन में
तुम ही हो जो मचल रहे
हर सबनम का कतरा-कतरा
मेरे दुखों का निष्कासन है
तुम उन्हें उठाकर हाथों से
जो देते हो वो दर्शन है
फ़िर हास्य मिले या दुःख भाई
वो शून्य शान्ति में खो जाता है
मैं भेद नही कर पाता हूँ
यही तुम्हारी समरसता है
हूँ कृतज्ञ पूर्ण तुमसे मैं प्रियतम !
जो जीवन संगीत मुझे हो देते
मैं जीता हूँ बस उन्हीं क्षणों में
जिनमें तुम मुझसे हो मिलते .
2 comments:
khoobsoorat khayal
luv
deepak
bahut sunder.
-jaya
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