इस प्रकम्पित चित्त का चिंतन कितना अधूरा है ? व्योम सा विस्तार जीवन का अलग अनुभव सभी का हमारी मान्यताएं और उनका टूटना कितना अधूरा है ? नही ये जानता मन कि सपने झूठ क्यों होते ? और जो है सच वही परिणाम ढोना क्यों जरूरी है ?
जब मेरा प्यार तुम्हारे लिए अहंकार का कारण बना और तुम्हारे द्वारा दिया तिरस्कार मेरे आत्मबोध का ; मैंने तुम्हे धन्यवाद दिया ईश्वर का प्रतिनिधि मानकर और खुश हुआ ईश्वरीय प्रेम पाकर .