प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Wednesday, December 24, 2008
मन
इस प्रकम्पित चित्त का चिंतन
कितना अधूरा है ?
व्योम सा विस्तार जीवन का
अलग अनुभव सभी का
हमारी मान्यताएं और उनका टूटना
कितना अधूरा है ?
नही ये जानता मन कि
सपने झूठ क्यों होते ?
और जो है सच
वही परिणाम ढोना
क्यों जरूरी है ?
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