सच कहा -
मुझसे दोस्ती निभती नही
निभे भी कैसे ?
तुम्हारे सतत आघात को
मैं सह नही पाता
अपनी पीड़ा को हँसकर
छुपा नही पाता
आत्मीयता के विस्तार में
सीमा रेखाएं ख्नीच नही पाता
दोस्ती के फासले जान नही पाता
अपनी परम अभिव्यक्ति रोक नही पाता
दोस्ती निभे भी कैसे
जब मेरी विनम्रता
तुम्हारे अहम् की पोषक बन जाए
तुम्हारी हँसी
मेरे हृदय पर कटाक्ष कर जाए
मेरा प्यार
तुम्हारे गर्व का हास बन जाए
दोस्ती निभे भी कैसे
जब मैं झूठ तुमसे कह नही पाता
तुम्हारा पतन सह नही पाता
वह जाल जिसमें आदमी फंसते हैं
बुन नही पाता .
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