तुम आक़र मेरे जीवन में
यूँ ही एक स्वर बन जाया करो
अधरों से मेरे गीत उठें तो
उनमें तुम मिल जाया करो
चंदन की खुशबू हो तुम
या रजनीगंधा फूल कोई
सुरभित कर जाती हो मुझको
तुम यूँ ही प्रसारित हुआ करो
जीवन-मरू की जलधार हो तुम
मेरे सपनों का साकार हो तुम
जो छू जाए मेरे मन को
ऐसी सुंदर मुस्कान हो तुम
मेरे नीरव से जीवन में तुम
कलरव बनकर यूँ हँसा करो
जब मैं चातक सा तृषित बनूँ
तुम स्वाति बूँद बन जाया करो
पतझड़ तो आए हरदम ही
मेरे जीवन के सांद्य समय
तुम उसमें भी बन दीप कोई
मेरा पथ आलोकित किया करो
तुम सजल करो मेरे नयनों को
दो अश्रु धार बह जाने दो
भर सकूं हृदय को भावों से
ऐसा अतुलित तुम प्यार करो
तुम हो अंतस का प्रपन्न भाव
झंकृत वीणा को किया करो
मेरी स्वर लहरी गूँज उठे
आशीष प्रेम का दिया करो .
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