प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Saturday, August 9, 2008
जाने क्यों
जाने क्यों
विश्वास नही होता
जो गुज़र गया
वह अतीत केवल भ्रम था
वह सम्बन्ध आत्मीय सा
जो हममे तुममे था
वो महज़ एक सपना था
तुम भूल गए मुझको
मैं तुम्हे भुला न पाया
शायद इसीलिए कि
जो जीवित है मुझमे अभी तलक
वो तुममे था कभी
बहुत निकट से पाया .
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