Saturday, August 16, 2008

समर्पण

आस्थाएँ टूटें नही
उस अनजान के प्रति
जो सदा ढांढस बंधाता
तुम हुए असफल
भला फ़िर क्या हुआ
हारना था एक को
तुम ही सही
एक कोशिश और हो
नए संदर्भों में
क्या पता तुम विजित हो
आख़िर भवितव्यता है
हाथ उसके
क्या पता तुम पा सको
सत्य अपने
खोजना तो सबको पड़ा है
रास्ता उस छोर का
मंजिलें आकर सभी
ख़त्म हो जाती जंहाँ
और है प्रारम्भ जिसपर
अनंत का वैभव निरंतर
धड़कनें कहतीं जहाँ हैं -
सत्य है केवल समर्पण .

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