आस्थाएँ टूटें नही
उस अनजान के प्रति
जो सदा ढांढस बंधाता
तुम हुए असफल
भला फ़िर क्या हुआ
हारना था एक को
तुम ही सही
एक कोशिश और हो
नए संदर्भों में
क्या पता तुम विजित हो
आख़िर भवितव्यता है
हाथ उसके
क्या पता तुम पा सको
सत्य अपने
खोजना तो सबको पड़ा है
रास्ता उस छोर का
मंजिलें आकर सभी
ख़त्म हो जाती जंहाँ
और है प्रारम्भ जिसपर
अनंत का वैभव निरंतर
धड़कनें कहतीं जहाँ हैं -
सत्य है केवल समर्पण .
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