हे पितः !
तुम्हारे द्वारा दी गई
पूर्णाहुति
कैसे विसर्जित की जा सकती है
पानी में
उससे तो
अभिषेक करना है हमें
वो शोभा है
हमारे ललाट की
और स्मृति भी
कि-
जीवन भर संघर्षों कि ज्वाला में
जलकर
करते रहे वर्षा हम पर
स्नेह की
हे पितः !
तुम्हारे द्वारा दी गई पूर्णाहुति
व्यर्थ नही जायेगी
वह हमारे उद्विकास में
नवीन चेतना लाएगी
व्यक्ति उत्थान से
लोक उत्थान तक
अनवरत विजयी होगी
जो संकल्प तुमने दिया है
जिजीविषा बन
हममें सदा रहेगी
मुझे याद है तुम्हारी पुकार
जो निरंतर उठती है मुझमें
बन संकल्प ज्वार -
"उठो ! जागो !
और उद्यम को प्राप्त हो
निर्निमेष काल से अभिसिंचित
प्रगति का पोषण करो
प्रिय पुत्र ! हर स्थिति में
ईश पर विश्वास कर
शक्ति का संवरण करो " .
1 comment:
priya rahul
tumhari kavita man ko suvasit kar gayi.
- jaya
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