छोड़कर वह जा चुकी है
ये मकां जो है मेरा
आ रहीं हैं चिट्ठियां
फ़िर भी उसी के नाम की
जी चाहता है
कह दूँ सबसे
वो यहाँ रहती नही
बेवफा है जिंदगी
हर किसी को मिलती नही .........
......कह रहे हो जी रहा हूँ
पर कहाँ मैं जी रहा हूँ
टूटा हुआ पत्ता हूँ यारों
नदी में बस बह रहा हूँ .
No comments:
Post a Comment