Saturday, June 21, 2008

अनाम पात्र

जिन पात्रों के बारे में
तुमने पढ़ा है
उनमें से कुछ
तुम्हे प्रभावित कर गए
हालाँकि ,
वो पात्र अब नही हैं
उन पात्रों के रचयिता अब नही हैं
मुर्दों की बस्ती में
वीरान सी रात में
जब तुम अकेले थे
कब्रों पर लिखे हर्फों को पढ़ लिया
मुर्दों की शक्लें कैसी होंगीं गढ़ लिया
उनमें से कुछ वफादार हो गए
कुछ दावेदार हो गए
कुछ महान और कुछ भगवान् हो गए
मानता हूँ रहे होंगे वो वैसे ही
जैसे तुमने गढे हैं
क्योंकि ,
तुम्हारा गढ़ना आधारहीन नही है
हर्फों से उनका रिश्ता हो
ये नामुमकिन नही है
पर सोचो तो उन पात्रों के बारे में
जो आज वर्तमान हैं
कहीं अधिक जीवंत
तुम्हारे गढे हुए मुर्दों से
तुम्हारी कल्पना से परे
यथार्थ में जीते
सुकरात की तरह
विष का प्याला पीते
ईसा की तरह
शूली पर चढ़ते
ये बात और है
ये प्रसिद्ध नही रहे
हमारे तुम्हारे बीच जीते रहे
उपनिषदों के दर्शन
गीता के उपदेशों का
जीवन में अनुपालन कर
नई अभिव्यक्ति देते रहे
और हम सब उन्हें देखकर
मूर्खों की तरह हँसते रहे
उपहास उड़ाता है काल भी
हमें हँसता देखकर
रुदन से भीगी पलकें खोलकर
यह कौन कह रहा है
आत्मबोध है -
-आत्मपीडन
-आत्मपीडन
-आत्मपीडन

No comments: