Saturday, June 21, 2008

संशय

अब मुझे भय लगता है
हर उस ज़ज्बात से
जिसमें प्यार है ,विश्वास है
क्योंकि -
दोनों ही टूटे हैं
बड़ी निर्दयता से हत्या कर दी गई
उस मासूम बच्चे की
जो हँस सकता था
दूसरों को खुशियाँ दे सकता था
हाँ ! मैं भी रोया था
उसके कत्ल के बाद
और वो सभी
जो प्रेम करना जानते थे
जो विश्वास करना जानते थे
क्योंकि -
वो मासूम बच्चा हमारा
अभिन्न अंग था
इस विलाप पर
वो हँसा था
जिसमें हृदय नही था
जो मुखौटे लगाना जानता था
तभी शायद ,
मुखौटा बदलकर बोला था
आबादी बढ़ने न पाए इंसानों की
जो प्यार कर सकते हैं
उसे भय था कि
लोग विश्वास पर जी सकते हैं
तभी से मुझे भय लगता है
हर एक पर शक सा होता है
कि जैसे -
सब अभिनय कर रहे हों
मंच पर आकर
अलग-अलग मुखौटे पहनकर
कि जैसे -
वो यकीन खो चुकने के बाद भी
यकीन दिलाना चाहते हों
एक जादूगर की तरह
पल भर में मुझे
हवा पर लिटा देंगें
बस एक बार ऑंखें बंद कर दूँ
सदा के लिए सुला देंगे
लेकिन -
मेरी भी जिद है
आख़िर मैं क्यों शक करना छोड़ दूँ
जबकि -
दोनों ही टूटे हैं
-प्यार भी
-विश्वास भी .

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