Thursday, June 19, 2008

फ़िर कौन हारा ?

असित नभ में
आज जागा एक तारा
अर्थ मुझको दे गया
फ़िर कौन हारा ?
अहम् की चट्टान को जो तोड़ दे
बह गई वह करुण धारा
उड़ गए पांखी सभी
तोड़कर पिंजरे की कारा
फ़िर कौन हारा ?
हर हार में एक जीत होती है सखे !
जो दृष्टि को आयाम देती है नया
करके अलसित स्वयं को तुम
मत बंधो जंजीर से
स्वयं को विस्तार दो तुम
प्यार के औदार्य में
शिशिर कण से प्रकृति ने
अश्रु का है मोल जाना
सूर्य की किरणों ने आकर
पुष्प को कैसे संवारा ?
फ़िर कौन हारा ?
फ़िर कौन हारा ?
फ़िर कौन हारा ?

1 comment:

jasvir saurana said...

अहम् की चट्टान को जो तोड़ दे
बह गई वह करुण धारा
bhut khub.likhate rhe.aap apna word verification hata le taki humko tipani dene mei aasani ho.