Thursday, June 19, 2008

प्रगल्भिता

वह कभी झूठ नही बोलती
समय की सीमाओं में बंधकर
वह तो मात्र बचाव करती है
समाज के दुर्भेद्य यथार्थ से
जिसने पराभूत किया है
उसके हर एक मर्म को
आघात पहुंचाकर
वह रेत ही हो जाती
मगर उसे तलाश थी
स्वयं में उस मोती की
जो खारे जल की बूंदों से
निर्मित होती है
तभी शायद
कभी-कभी वो
झूठ बोल लेती है
मुस्कुराते हुए
अपनी नज़रों से
दूसरों को तोल लेती है .

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