Friday, April 4, 2008

बंशी

मैं खोखला एक बाँस हूँ
और तुम हो वायु
जब मुझको परस कर तुम गुजरती
फूटते हैं स्वर अनोखे
जो प्रेम के अकथनीय शब्दों को
सहज ही व्यक्त करते
बिन तुम्हारे
मैं भला किस काम का
खोखला , बेजान
बिल्कुल बेसुरा
निष्प्राण - सा

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