प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Thursday, April 17, 2008
सपने
सन्नाटा भी बोल रहा है
सुधियों के पट खोल रहा है
संभव है मैं बह जाऊँ
आशाओं के दीप जलाऊँ
और कामना मधुर-मिलन की
लिए साथ में सो जाऊँ
लहरों की कल-कल छल-छल में
पायल के घुँघरू बजते हैं
विश्वासघात होने पर भी
आँखों में सपने पलते हैं
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