Thursday, April 17, 2008

विरह

पंछियों ने गीत गाए
भोर का नभ जाग जाए
खिल रहे हैं फूल कितने
रूप का माधुर्य छाये
फ़िर कौन व्याकुल चीखता-सा
कह रहा है -
तुम न आए
तुम न आए
तुम न आए

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