लेकिन अर्थहीन जीवन को
क्या संज्ञा दूँ
जबकि -
मेरी इयत्ता
मुझे ही रोकती है
उस गहराई तक पहुँचने के लिए
जहाँ मेरा आशय छिपा है
तभी तो-
अनगिनत आँसू की बूंदों के बाद भी
दुःख का एक टुकड़ा
कहीं रुका है
(बह जाने के लिए )
तुम्हारी स्वीकृति इयत्ता !
तुम्हारा प्यार इयत्ता !
क्या सचमुच बुरा है ?
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