Thursday, April 17, 2008

अनावृत्त उजास

दिन तो बीत गया
एक साया
जो साथ था
धूप के आते ही
छूट गया
और अंधेरे में
मैं अकेला रह गया
इस खामोशी में
अपनी यादें ही भेज दो
क्या पाता मैं
फ़िर से जी पाऊँ
दिन के उस अनावृत्त उजास में
जिसमें -
तुम्हारा मुख-कमल खिला था
और मैं
प्रेम-सरोवर में
निर्वस्त्र-सा खड़ा था

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