Wednesday, April 2, 2008

सह्धर्मियों से

कल मैं चला जाऊंगा
जब क्षितिज के पार
क्या कर सकोगे तुम मेरा
शेष है जो काम ?
यह बंधी तृष्णा नही है
और न है मोह
चाहता हूँ बहती रहे
स्रोतस्विनी की धार
इसलिए हूँ पूछता -
क्या कर सकोगे प्यार ?
ले लो सभी कुछ आज
स्वयं को तुम माँज
-यह आनंद
-यह शान्ति
-यह संतोष
-यह प्रेम
यह अंतस का प्रपन्न भाव
दुःख - सुख के प्रति समभाव
लिख सकोगे तुम तभी
वो शब्द जो हैं बह रहे
-इस वायु में
-इस गंध में
हैं जो
-अनंत आकाश में
सुन सकोगे -
प्रणव की ध्वनि
स्वयं में तुम डूबकर
कर सकोगे -
संधान तम का
अंतर्ज्योती को तुम देखकर

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