प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Sunday, April 6, 2008
प्रतीक्षा
अन्तिम बार .......
जब मैंने कहा था -
फ़िर कब मिलोगी ?
तुमने कहा था -
धूप छिटकते ही
लेकिन .........
आज तक वो धूप नही छिटकी
जो मुझे समेटती
अपनी बाँहों में
जबकि
मैं ख़ुद बिखर गया
घास पर
ओस बनकर ........
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