कनेर का पीला फूल
है आज भी मेरी
पुरानी डायरी के पन्नों में दबा
नही है इसमें - सुगंध ,रूप-रंग
जो उस समय था
जब मुस्कुराकर शरमाते हुए
तुमने दिया था
मगर है आज भी इसमें
वही आकर्षण
जो डायरी के खुल जाने पर
मुझे बरबस खीच लेता है
तुम्हारी स्मृति की ओर
है कौन सा जादू ?
नही हूँ जनता इसमें छिपा
कनेर का पीला फूल
है आज भी मेरी
पुरानी डायरी के पन्नों में दबा .
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