Saturday, March 29, 2008

तितली से

तुम नही आई
तो क्या हुआ
धूप आई है
मैं इसी से बोल लूंगा
प्रेम है स्वभाव मेरा
भेद सारे खोल दूँगा

दूर प्रान्तर में खिला
एक पुष्प हूँ
स्वयं में परिपूर्ण हूँ
खिलना है स्वभाव मेरा
खिल गया हूँ

जीवन मिला है
सुगंध का सौरभ मिला है
मैं इसे बिखरा रहा हूँ
प्रेम है स्वभाव मेरा
मैं इसे फैला रहा हूँ

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