प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Monday, March 17, 2008
प्रेमार्थ
सागर-तट पर खड़े होकर
गहराई नापी नही जाती
हो जाए प्यार तो
झिझको मत
डूब जाओ
क्योंकि -
मोती यूं पाई नही जाती
और फ़िर
मोती मिले या न मिले
डूबने वाला
मोती की आकांक्षा ही कब करता है
उसका तो डूबना ही
स्वयं को अर्थ देता है
प्रेम को मर्म देता है .
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment