Wednesday, March 26, 2008

प्रेमाद्वैत

मेरे होठों पर
कोई मुस्कान नही छिटकी
हालांकि ,
बसंत में आम बौराया
कोयल ने खुशी हो गीत गया

मेरे होठों पर
कोई मुस्कान नही छिटकी
हालांकि ,
सावन की घटायें - घिरीं और बरसीं
केकी रव ने गायी कजरी

पर नही छिटकी
मेरे होठों पर वो मुस्कान
जिसमें छिपा था-
तुम्हारा प्यार
बस छिटकी है तो
मेरी पीड़ा
मेरे आँसू की रजत धार
फ़िर भी तुम कहती हो
मुझमें नही प्यार ?

सच कहती हो
मुझमें नही प्यार
क्योंकि -
अब तक तुमको ढूँढा तुममें
जबकि -
तुम हो मुझमें

तुम दूर कहाँ हो मुझसे
मेरे निकट यहीं मुझमें
मेरी स्मृति में
मेरी आंखों में
मेरी धड़कन में
मेरी साँसों में

तुम ही तो
-इस बसंत में
-इस सावन में
-केकी रव में
-कोयल की मधुरिम द्वानी में
-इस बदली में
-इस कजरी में

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