प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Monday, March 24, 2008
अंतरंगता
तुम्हारी अंतरंगता में
एक खुशबू है
जो बरबस मुझे खींच लेती है
जैसे गुलाब की कली
खिल जाने पर
और धरती बारिश से
भीग जाने पर .
1 comment:
अमिताभ मीत
said...
अच्छा लगा.
March 24, 2008 at 6:55 PM
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1 comment:
अच्छा लगा.
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