Monday, March 24, 2008

तुम्हारे आते ही

तुम्हारे आते ही
निःसृत हो जाती हैं
कितनी कविताएँ-प्रेम की
तुम सूरज हो
और मैं उद्यान
तुम्हारे आते ही
खिल उठती हैं
सारी कलियाँ एक साथ .

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