प्रसंग-पारिजात(काव्य संग्रह) और कुछ अन्य कविताएँ
Thursday, March 20, 2008
भोर की धूप
तुम आए बहार बनकर
क्या सजकर
क्या संवरकर
मैं देखता रहा -मूक होकर
काश !
कह पाता कि -
तुम क्या खूब हो
शरद ऋतु में
भोर की एक धूप हो .
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