Saturday, March 29, 2008

निमित्त

तुम्हारा नाम क्या है
ये जानकर
मैं क्या करूंगा
रूप है कैसा तुम्हारा
ये मापकर
मैं क्या करूंगा
सूर्य की किरणें
कभी क्या पूछती हैं -
कौन हो तुम ?
चंद्रमा की चाँदनी
क्या देखती है -
रूप को
फ़िर मैं ...
छुद्रतम एक अंश हूँ -
ब्रम्हांड का
दर्प क्यों इसका करूं -
मैंने किया है प्यार तुमको
सौभाग्य है मेरा मुझे
तुम मिल गए हो
प्रेम के विस्तार में
एक निमित्त
मुझको कर गए हो

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