Monday, March 24, 2008

प्रकृति-दान

सामने जो गुलमोहर का पेड़ है
देखता हूँ छायी हुई है
आज उस पर हरितिमा
झूमता है वह
उसकी पत्तियां
और जब यह फूलता है
एक मादक लावण्य सा
तब रूप इसका
सहज ही मुझको बुलाता
मौन होकर भी मुझे यह
अनाहत संगीत का आनंद देता
बस यही - ऐसा नही
या कहो सारी प्रकृति की सम्पदा
मुझ पर न्योछावर हो रही है
मांग इसकी कुछ नही
हाँ ! शान्ति मुझको दे रही है ...

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